चतुर तीतर, चालबाज खरगोश और धूर्त बिल्ली का न्याय

चतुर तीतर, चालबाज खरगोश और धूर्त बिल्ली का न्याय:- एक तीतर कई साल से बरगद के पेड़ की कोटर में रहता है। खेतों का स्वाद चखने बाहर जाता है तो चालबाज खरगोश उसका घर हड़प लेता है।

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चतुर तीतर, चालबाज खरगोश और धूर्त बिल्ली का न्याय:- एक तीतर कई साल से बरगद के पेड़ की कोटर में रहता है। खेतों का स्वाद चखने बाहर जाता है तो चालबाज खरगोश उसका घर हड़प लेता है। दोनों न्याय के लिए धूर्त बिल्ली के पास जाते हैं और बिल्ली दोनों को ही खा जाती है। यह best hindi story hindi सिखाती है कि आपसी झगड़े में तीसरे का फायदा होता है।

चलो, अब पढ़ते हैं यह मजेदार और सबक देने वाली कहानी...

जंगल के बीचों-बीच एक बहुत पुराना, घना बरगद का पेड़ खड़ा था। उसकी एक बड़ी-सी कोटर में कई सालों से एक तीतर रहता था। नाम था उसका तीतू तीतर। तीतू बड़ा सीधा-सादा और संतोषी पक्षी था। बरगद पर लगने वाले बेर, जामुन, अंजीर और छोटे-छोटे बीज ही उसका पूरा खाना थे। सुबह उठता, चुगता, दोस्तों से दो बातें करता और शाम को आराम। सालों से उसकी जिंदगी ऐसे ही हंसी-खुशी चल रही थी।

एक दिन उड़ते-उड़ते उसका पुराना दोस्त चकोर भैया आया। दोनों खूब गप्पें मारीं। चकोर भैया बोले, “अरे तीतू, तू अभी तक बरगद के बेर-जामुन खाकर गुजारा कर रहा है? दुनिया में तो कमाल का अनाज है! खेतों में गेहूं, मक्का, धान – एक दाना चख, जिंदगी बदल जाएगी!” तीतू ने मूंछों पर ताव देकर कहा, “सच कह रहा है चकोर भैया? चलो, कल ही देखता हूं!”

अगले दिन तीतू दूर के खेत में उतरा। धान की बालियां सोने की तरह लहरा रही थीं। एक दाना चखा तो जैसे मुंह में स्वर्ग उतर आया! “वाह! ये तो अमृत है!” उस दिन से तीतू रोज खेत जाता, पेट भरता और वहीं सो जाता। सात दिन हो गए, घर की सुध भी नहीं रही।

इधर जंगल में भयंकर बारिश हुई थी। एक खरगोश का बिल पानी में डूब गया। उसका नाम था खरमस्त खरगोश। खरमस्त इधर-उधर भटकता हुआ बरगद के नीचे पहुंचा। तीतू का कोटर खाली देखकर सोचा, “वाह! पांच सितारा घर मिल गया!” और फटाफट कब्जा जमा लिया। तकिया लगाकर आराम करने लगा।

आठवें दिन तीतू लौटा। कोटर में खरमस्त को देखकर चिल्लाया, “अरे खरमस्त! ये मेरा घर है! फौरन निकल!” खरमस्त ने एक आंख खोली, मुस्कुराया, “तेरा घर? मैं तो सात दिन से यहां राज कर रहा हूं। जो पहले कब्जा कर ले, वही मालिक! जा, नया घर ढूंढ!” तीतू फड़फड़ाया, “सात दिन? मैं दस साल से यहां हूं! कौआ काका, बंदर भैया, लोमड़ी चाची – किसी से भी पूछ ले!” खरमस्त हंसा, “पूछने की जरूरत नहीं। खाली मिला, मेरा हो गया। चल हट!”

तीतू गुस्से में पूरे जंगल घूमा। कौआ काका बोले, “बेटा, झगड़ा मत बढ़ा।” हाथी अंकल ने सूंड हिलाई, “मैं बीच में नहीं पड़ता।” बंदर भैया ऊपर से चिल्लाए, “मुझे क्या, मैं तो झूला झूल रहा हूं!”

आखिर में लोमड़ी चाची ने सलाह दी, “दोनों मिलकर किसी पंडित जी को पंच बनाओ, फैसला उनसे करवाओ।” दोनों को बात जंची। इधर-उधर घूमते-घूमते गंगा किनारे पहुंचे। वहां एक बिल्ली बैठी थी – माथे पर लाल टीका, गले में तुलसी की माला, आंखें बंद, जोर-जोर से “राम-राम... हरि-हरि...” जप रही थी। नाम था उसका बिल्ली बुआ

खरमस्त खुशी से उछला, “तीतू भाई, इससे अच्छा पंच कहां मिलेगा? ये तो साक्षात संत हैं!” तीतू को थोड़ा डर लगा, “खरमस्त, बिल्ली है ये... सावधानी से...” खरमस्त ने हंसकर टाला, “अरे पागल, देख ना – दुनिया त्याग दी है इसने!”

बिल्ली बुआ ने धीरे से आंखें खोलीं, मधुर स्वर में बोलीं, “बेटा, क्या बात है? इतने परेशान क्यों हो?” दोनों ने रो-रोकर अपनी-अपनी कहानी सुनाई। बिल्ली बुआ ने गंभीर होकर कहा, “आओ मेरे पास, मैं नजदीक से सुनूं और न्याय करूं।”

तीतू और खरमस्त एक-दूसरे को देखकर धीरे-धीरे पास गए। जैसे ही दोनों पहुंचे, बिल्ली बुआ की आंखें चमकीं – “राम नाम सत्य है!” एक झपट्टा तीतू पर, दूसरा खरमस्त पर! दोनों चिल्लाए, “अरे बुआ जी... बचाओ!” लेकिन बिल्ली बुआ ने दोनों को एक ही झटके में निपटा दिया। पेट भरकर डकार ली और फिर माला लेकर जप करने लगीं।

दूर बैठा कौआ काका सब देख रहा था। उसने सिर हिलाया और चहचहाया, “देखा, आपसी झगड़े में तीसरा मालामाल!”

उस दिन के बाद जंगल में नया नियम बन गया – झगड़ा हो तो पहले आपस में सुलझाओ, वरना बिल्ली बुआ जैसा कोई मिलेगा! तीतू का छोटा भाई चिंटू तीतर अब बच्चों को कहानी सुनाता, “देखो, घर खाली छोड़ा तो खरगोश आया, झगड़ा किया तो बिल्ली बुआ ने खाया! आपस में प्यार से रहो, कोई घर नहीं छीनेगा!”

सीख:

दोस्तों, छोटी-छोटी बातों पर आपस में लड़ाई मत करो। झगड़े में हमेशा तीसरे का फायदा होता है। प्यार और समझदारी से रहो – जंगल भी खुश, तुम भी खुश!

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